प्रत्येक मनुष्य का एक ओरा पुंज होता है। किसी भी श्रेष्ठ देव ग्रंथ या समाधि की ऊर्जा को ग्रहण करने के लिए मानव अपने श्वास -प्रश्वास से उस ऊर्जा को ग्रहण करता है। श्रेष्ठ ऊर्जा विसर्जित न हो जाए, उसका पूरा -पूरा लाभ एवं आशीर्वाद प्राप्त हो, इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए मंदिर या गुरूद्वारे में सिर पर पल्ला अथवा कोई कपड़ा रखा जाता है। दूसरी ओर सिर पर पल्ला लेना सम्मान सूचक माना गया है। भारतीय संस्कृति सदैव चैतन्यता को महत्व देती है। साथ ही चमड़े की वस्तुएं, जो मृत पशुओं से निर्मित होती हैं, उन्हें अपवित्र माना गया है। इस कारण अपवित्र वस्तु को मंदिर में नहीं ले जाना चाहिये। इसी आशय से उन्हें वर्जित किया गया है।