Gahoi Samaj India

विवाह सम्बन्धी संस्कार

गहोई वैश्य समाज के विवाह सम्बन्धी संस्कार

विवाह सम्बन्धी संस्कार

पुत्र पुत्रियों के सुयोग्य विवाह सम्पन्न करना हमारी सबसे बड़ी नैतिक जिम्मेदारी है। वे ही बेटे, दामाद, बेटी, बहू हमारे परिवार, कुटुम्ब और समाज का कल उत्तरदायित्व सम्हाल कर आने वाले युग का निर्धारण करेंगे। विवाह योग्य अच्छे वर-वधू की जानकारी प्राप्त करने के लिये उनके पारिवारिक परिचय तथा जन्माकों की आवश्यकता होती है। इस कार्य में गहोई बन्धु पत्रिका जिसमें प्रत्येक माह वायोडाटा प्रकशित किए जाते हैं। एवं महासभा की बेबसाइड से भी सहयोग ले सकते है। साथ ही समाज द्वारा जगह-जगह पर परिचय सम्मेलन किए जा रहे हैं जिनके माध्यम से आप सहज ही जानकारी प्राप्त कर अपने पुत्र, पुत्रियों के वैवाहिक

विवाह

1. पक्कयात (सम्बन्ध तय होने की अनुमति प्राप्त करना) :-

यहां से वैवाहिक कार्य का शुभारम्भ होता है। दोनों पक्ष लड़का-लड़की देखने तथा संतुष्ट होकर सभी बातें तय होने के साथ कन्या पक्ष वर पक्ष के यहां विवाह की अनुमति प्राप्त करने जाते हैं तथा सम्बन्ध तय होने की स्वीकृति मिलने पर वर पक्ष के यहां उनके पूजा स्थान पर भगवान के सामने कम से कम 1 किलो मीठा, कुछ फलों के साथ 1 नारियल तथा 101 रूपये नगद रखकर अगरबत्ती दीपक जलाकर प्रार्थना करना चाहिये कि ईश्वर यह आयोजन सुख से पूर्ण करें। तत्पश्चात वर पक्ष के मुखिया से पूछकर किसी एक सम्मानीय बुजुर्ग को कम से कम 101 रूपये देकर चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लेना चाहिये तथा बिदा लेते समय घर के छोटे बालक बालिकायें यदि हो तो उन्हें भी कुछ उचित नगद राशि देकर स्नेहपूर्वक प्रस्थान करना चाहिये। इससे व्यक्ति के व्यवहार तथा प्रेम का आंकलन होता है।

2. सगाई :-

सगाई मे एक बड़ा थाल लड्डुओं का एवं चार थाल छोटे जिसमें 5 किलो बूंदी के लड्डू, फल, मेवा, मिठाई, वस्त्र, आभूषण, रूपया आदि रखे। 101 रू. लड़के के हाथ पर रखकर लड़के का तिलक कर हार पहनावे लड़की का भाई लड़के को पान खिलावे फिर वस्त्र, आभूषण, रूपया जो भी हो देवे एवं 5/- रू. न्योछावार करे। लड़का वाला बुलउवा बाँटेगा भोजन स्वल्पाहार श्रद्वानुसार करा सकते हैं। कम से कम 1/-रू. देकर भी सगाई की जा सकती है।

3. रिंग सिरेमनि अथवा कन्या की गोद भराई :-

आजकल कहीं-कहीं पर कन्या की गोद भराई तथा रिंग सिरेमनि का आयोजन किया जाने लगा है यह कन्या पक्ष के घर पर होता है। इस आयोजन में वर पक्ष वाले खास-खास 10-11 सदस्य कन्या पक्ष के यहां आते हैं। कन्या पक्ष द्वारा अपने नाते रिश्तेदारों की उपिस्थति में उन्हें आदर सम्मान सहित नाश्ता, भोजन आदि कराया जाता है, ततपश्चात वर पक्ष द्वारा कन्या की गोद भराई रस्म पूर्ण की जाती है। ओली भरने का कार्य फूफा अथवा घर के किसी सम्मानीय बड़े बुजुर्ग द्वारा किया जाना चाहिये,यह भी ध्यान रहे कि गोद भरने वाला व्यक्ति संतानहीन न हो। कन्या की ओली भरने से पूर्व 1अंजुली बताशा आचार्य को दें। आचार्य न होने पर भगवान के सम्मुख रखें। ओली में कन्या के वस्त्र (साड़ी आदि), आभूषण तथा नगद राशि, बताशा के साथ डालना चाहिये। पहले 4 अंजुली बताशा डालें। फिर पांचवी अंजुली में बताशा के साथ 1नारियल, वस्त्र एवं आभूषण व 101 रूपये नगद डाल कर कन्या की ओली भरें। ओली भरने के पश्चात 1 अंजुली बताशा नाइन को दें, पश्चात 10 रूपये से कन्या की निछावर कर नाई को दे। उसके पश्चात उचित अथवा निर्धारित स्थान पर बैठकर वर, कन्या एक दूसरे को अंगूठी पहनायें तथा उक्त अवसर पर वर, कन्या दोनों पक्ष 10/-, 10/- रूपये से उनकी निछावरकर नाई को दें।
नोट :- उक्त वर, बधू एक दूसरे को माला नहीं पहिनावें। आचार्यो द्वारा गणेश पूजन के समय भी वर की पांव पखारने का कार्य भी कन्या के भाई से न कराया जावे। यह दोनों कार्य विवाह के पूर्व उचित नहीं है। विषेश:- कहीं पर वर, कन्या दोनो की ओली डाली जाती है। दोनों कार्य एक ही समान है परन्तु वर की ओली में लगुन खुलने से पूर्व सिर्फ बताशा एवं 1 नारियल तथा 101 रूपये ही डाले जावें, अन्य कुछ भी नही

4 विवाह षोधन (सुतकरा):-

लड़की वाला शुभ मुहुर्त में योग्य पंडित को बुलाकर लगुन पत्रिका लिखने व शादी का पूरा विवरण शोधन कराकर पत्र लिखकर पत्र में 5/- रू. रखकर हल्दी छिड़क कर नाई या डाक द्वारा भेजे।

5. लग्न पत्रिका लेखन कार्य :-

यह कार्य कन्या पक्ष के घर पर ही सुविधानुसार सम्पन्न किया जाता है। इस कार्य में वर पक्ष की उपिस्थति नहीं होनी चाहिये, भले ही वह स्थानीय ही क्यों न हो। इस आयोजन का कार्य कन्या पक्ष अपने पुरोहित से पूंछकर शुभ मुहुर्त में विवाह सम्पन्न होने की तारीख से 1पक्ष पूर्व करना चाहिये। यह कार्य सुबह से शाम गौधूली बेला के बीच कन्या पक्ष अपने बन्धु बान्धव रिश्तेदार तथा स्थानीय प्रतिष्ठित सामाजिक जन सहित स्थानीय पंचों की उपिस्थति में विद्वान आचार्य (पुरोहित) द्वारा लगुन लिखवाई जावे। इसमें लगने वाली सामग्री निम्न अनुसार है 2 नग छपी हुई लग्न पत्रिकायें, पूजन के लिये हल्दी पिसी, रोरी, कुकुम, चावल, फूल-माला, अगरबत्ती, चन्दन (घिसा हुआ), बताशा , मिष्ठान्न, फल, पचरंगा सूत 1 बड़ी गिट्टी, खुले पान (डंठल वाले बड़े) 11 नग, सुपाड़ी बड़ी 7 नग, छोटी पूजन की सुपाड़ी 11 नग, छोटे पान 10 नग, लौंग, इलायची, पीले चावल 100 ग्राम, दुर्वा 1 मुट्ठी, गाय का गोबर, 10 दोना, हल्दी की गाठें 15 नग, पटा एवं भगवान का सिंहासन, कलश, दीया सहित गेहूं 100 ग्राम, आम की की लकड़ी, 100 ग्राम परथनियां, हवन पात्र, 50 ग्राम हवन सामग्री, गंगाजल इत्र आदि। लग्न पत्रिका में विवाह के कार्यक्रम मुहुर्त अनुसार लिखने के उपरान्त, उसके अन्दर पीले रंगे हुये चावल तथा 5 बड़ी सुपाड़ी, 5 हल्दी की गांठे, सवा रूपया नगद या चांदी का सिक्का जैसी भी सामर्थ्य हो रख, पत्रिका बन्द कर ऊपर खुले पान, दुर्वा रखकर रंगीन सूत से अच्छी तरह बांधें तथा दूसरी पत्रिका जो घर में ही रहेगी, उसमें 1 सुपारी, 1 हल्दी चावल दुर्वा पान रखकर बांधे। पहली लग्न पत्रिका साटन के लाल/पीले वस्त्र में रखकर किसी डिब्बे में रखकर साथ में एक नारियल रखकर पैक कर दें। यह पत्रिका एक रात्रि अपने यहां रखकर, दूसरे दिन नाई अथवा कन्या के भाइयों द्वारा वर पक्ष के यहां भेजना चाहिये, साथ में पंचों द्वारा लिखा गया पत्र और उसके साथ 51 रूपये लगुन के, 51 रूपये ओली के 11 रूपये पूजन के, 10 रूपये, निछावर के कुल 123 रूपये रखकर अलग से भेजें। लन्ग पत्रिका लिखने उपरान्त पुरोहित (आचार्य) की दक्षिणा 51 रूपये अथवा 101 रूपये यथाशक्ति नाई को दूर्वा के 10 रूपये तथा लग्न पत्रिका की निछावर 10 रूपये अवश्य देवें। सर्वसम्मत नियम अनुसार मांगलिक कार्य प्रारंभ होने पर पंचायत के लिये उपिस्थत पंच को उस पंचायत के नियमानुसार अथवा अपनी सामर्थ अनुसार रूपये देकर रसीद प्राप्त कर समाज को सहयोग अवश्य देवें। इस अवसर पर सभी अतिथियों के चाय, नाश्ता अथवा सुविधा युक्त उनका सत्कार कर बुलौवा (बताशा अथवा अन्य मिष्ठान्न) के पुड़े देवें।

6. वर पक्ष द्वारा लग्न वालों की बिदाई :-

वर पक्ष को कन्या पक्ष द्वारा भेजी गई लग्न पत्रिका को सम्मान पूर्वक स्वीकार कर निकट किसी मंदिर अथवा घर के ही पूजा स्थल में रखवा लेना चाहिये तथा साथ में आयी पंचपाती के पढ़ लेना चाहिये। उसमें लिखे वैवाहिक कार्यो के मुहूर्त अनुसार ही अपने सभी वैवाहिक कार्यक्रम पूर्ण करना चाहिये। साथ ही लग्न पत्रिका लाने वाले का उचित पुरस्कार तथा भाई हो तो उनकी यथा शक्ति बिदाई करना चाहिये।

7. मण्डपाच्छादन:-

यह विवाह का अति महत्वपूर्ण कार्य है। कन्या पक्ष के यहां मड़वा गाड़ने का कार्य सम्पन्न किया जाता है तथा इसी हरे बांस के मण्डप की छांव तले विवाह की सम्पूर्ण प्रक्रिया उपरांत सात फेरे लगाकर विवाह पूर्ण होता है। पूर्व में बारात आगमन कन्या के घर होता था परन्तु वर्तमान में वर एवं कन्या पक्ष के तालमेल अनुसार वर के नगर में ही जाना पड़ता है अथवा विशाल समारोहों के कारण निवास स्थान में जगह न होने से व्यवसायिक स्थलों में जाकर वैवाहिक कार्य सम्पन्न किये जाते है। लग्न पत्रिका में लिखे मुहुर्त अनुसार यदि फेरे घर से करने हो, तो स्थाई अथवा चल पूजा से मडवा गाड़ने का कार्य पूर्ण करना चाहिये, वैसे आजकल उसी दिन विवाह के लिये निश्चित स्थान पर ही कन्या पक्ष द्वारा मण्डपाच्छादन का कार्य सम्पन्न किया जाता है। वर्तमान में मण्डप स्थल आधुनिक सज्जा से युक्त पूर्व से ही बने होते है। केवल खम्म गाड़ना भर शेष होता है, जिसके लिये निम्न सामान की आवश्यकता पड़ती है।

चार कलसी वाला एक मंडवा (गहोईयों का) साथ में 2 पटली तथा 1 नग शाल वृक्ष की लकड़ी (यह लकड़ी वंश बेल वृद्धि की सूचक होती है, इसे वंश वृद्धि के लिये बहुत ही शुभ माना गया है। 1 नग पंचरत्नी, फूलमाला, कलश के लिये एक बड़ा लोटा (कांसे का अधिक उपयुक्त), 2 मिट्टी के बड़े दिया, 200 ग्राम मीठा तेल, 2 बड़ी लम्बी वाली बाती, 1 माचिस, 1 पुड़ा अगरबत्ती, गेहूं 100 ग्राम, पूजा हेतु हल्दी गांठ, सुपाड़ी बड़ी, लौंग, इलायची, खुले डंठल वाले पान बडे़, 5 नग हल्दी पिसी 100 ग्राम, रोरी, चन्दन, रंगीन सूत, कपूर, शुद्धता घी 50 ग्राम, बताशा 100 ग्राम, चावल 50 ग्राम, हवन सामग्री 50 ग्राम, मीठा 250 ग्राम, गंगाजल, आम की लकड़ी, हवन की परथनियां, आम की पत्ती, 7-8 किलो मिट्टी, एक खाली टीन रंगीन पेपर से सजा हुआ, पूजा हेतु थाली, पूजन हेतु जल अलग से, गाय का गोबर (या बनी हुई गौर गणेश जो लगुन लिखते समय बनाई गई थी), एक लोहे की सब्बल। पूजन में कन्यादान लेने वाले व्यक्ति को बैठना चाहिये। यदि पत्नी है, तो सपत्नीक विधि पूर्वक पूजा करना चाहिये। पूजन पूर्ण होने पर मानदान दामाद, बहनोई, भानजा आदि जो समय पर उपिस्थत हों उनका रोरी तिलक लगाकर पूजन कर, उनके हाथों में हल्दी लगायें, पश्चात उन्हें कुछ नेंग यथा शक्ति देकर उनसे मड़वा गाड़ने का अनुरोध करें, मड़वा गाड़ते समय पंच को आवश्य आमंत्रित करें। तथा मानदान के साथ, चार और व्यक्ति हाथ लगावें, जो अलग-अलग गोत्र के हों तथा संतान संपन्न हों। (कुआरे लड़के मण्डप में हाथ न लगायें तथा मामा या भाई के सालों को भी मण्डप गाड़ते समय उसमें हाथ नहीं लगाना चाहिये।) मड़वा गाड़ने से पूर्व मिट्टी टीन में भर लें, सब्बल से 5 बार खोदें, फिर पंचरत्नी तथा सवा रूपये उसमें पत्ते में बांधकर नीचे दबा दें तथा मड़वा उसी के उपर रखकर गाड़ दें, बगल से (समय) शल की लकड़ी गाड़ दें। हल्का जल डालकर अच्छी तरह दबा दें। मड़वा के ऊपर आम की पत्ती माला-फूल आदि रख दें एवं प्रणाम करें। पश्चात कन्या की भाभी से मण्डप में हल्दी कोपर में घोलकर 5-5 हांथे मण्डप में तथा टीन में लगा दें। पुरोहित को दक्षिणा 51/- या 101/- अथवा यथा शक्ति पूजन करने वाले व्यक्ति से संकल्प करायें, साथ में 5-5रूपये साथियों को आवश्य दें। नाई को 10/- मंडप की निछावर तथा 10/- मानदान की निछावर कर देवें। पश्चात मंडप में उपिस्थत सभी का रोरी हल्दी चांवल से तिलक करें, (परस्पर हल्दी लगाना खेलना आदि अब समयानुकूल नहीं है। अत: इसे महत्व न दिया जाय) सभी उपिस्थत बन्धु बान्धवों को मंडप के नीचे अर्थात निकट बैठाकर भोजन करा के मंडप को जूंठा अवश्य कर दें।
नोट :- बारात के दिन यदि मंगलवार का दिन हो, तो मंडवा एक दिन पूर्व ही कर लें क्योंकि मंगल भूमि का बड़ा पुत्र है, पुत्र के दिन मां (धरती) का खोदना शास्त्रों में वर्जित है, इसके परिणाम अनुकूल नहीं होते। अत: इस बात का ध्यान अवश्य रखें। जहां तक बन सके मड़वा की ज्योति न बुझे समय-समय पर दिया में तेल डालते

8. अरगना एवं मांगर माटी :-

लग्न लिखने के बाद यह प्रथम वैवाहिक संस्कार है। इसका सीधा सम्बध कुल देवता से है। इस आयोजन में अपने खास सगे सम्बन्धी जनों का निमंत्रण भी किया जाता है तथा महिलायें इसका बुलावा भी भेजती है (प्रथम) अर्गना की पूजा होती है, कन्या को उबटन लगा स्नान कराकर नये वस्त्र (साड़ी) पहनाकर खौर निकाली जाती है तथा कुमकुम तिलक रोरी लगाकर आरती की जाती है, पश्चात कन्या को उत्तर मुख कर के पटा पर बिठाया जाता है एवं पास ही पूरब पश्चिम नन्द, भौजाई, सास बहू अथवा देवरानी जेठानी कोई भी दो महिलायें सूपा में (वर्तमान समय में) चना या चिरौंजी एवं शक्कर लेकर सात-सात बार एक दूसरे के सूपा में उछालकर डालती है, पश्चात यह शक्कर चिरौंजी पूजा स्थान पर रख दी जाती एवं ‘मांय’ बनाते समय उक्त चिरौंजी तथा शक्कर को ‘मांय’ के खोवा या आटा में मिला दिया जाता है, जिससे ‘मांय’ बनती है। बाद के आगे दिनों में परिवार के खास घरों (3 या 5) में कन्या का नियंत्रण होता है, तब कन्या वही साड़ी पहन कर जाती है, तब आमंत्रित करने वाले उसकी हंसी खुशी ओली भरते है। जो कन्या के लिये शुभ माना गया है। इसी दिन अर्गना के पश्चात, सांय 4 बजे के लगभग परिवार की सभी औंरतें मिलकर गाजे-बाजे के साथ पास के ही किसी पवित्र स्थल नदी, पोखर, तालाब अथवा बगीचे में जाती है तथा वहां का पूजन कर मिट्टी खोद कर लाती है। इसी मिट्टी से कुल देवता की पूजा में लगने वाले पात्र (बर्तन) का निर्माण किया जाता है, जिनका पूजा स्थल में रख उपयोग किया जाता है। घर वापस आकर सभी महिलाओं को बुलावा में बताशा देने का प्रचलन है। यह कार्य वर तथा कन्या दोनों पक्षों में समान रूप से सम्पन्न किया जाता है।

9. तेल, मायनों (मातृका पूजन) :-

यह कार्य बरात के एक दिन पूर्व संध्या पर होता है, इसमें घर की सभी महिलायें मिलकर, बरा, मुंगौड़ा तथा मीठे पुआ अथवा गुलगुलों को बनाती है तथा इनसे वर के घर की कन्या की ओली भरते हैं। बाद में परिवार रिश्तेदार अतिथि मित्र आदि सब परस्पर मिलकर खाते है। आज के बने बरा ही मडवा के दिन कच्चे भोजन के साथ परसे जाते है। बारात के दिन निकासी के पूर्व कन्या पक्ष तथा वर पक्ष अपने-अपने कुल देवता का विधि विधान पूर्वक अपनी परिवारिक परम्परा के अनुसार पूजन करते है तथा सभी परिवार-कुटुम्बके सदस्यों द्वारा कुल देवता के दर्शन कर (मेंहर) पूजन करने वाले प्रमुख द्वारा प्रसाद रूप में (मांय) दी जाती है, जिन्हें बडे़ सम्मान आदर के साथ हरसदस्य ग्रहण करता है तथा स्वंय को धन्य समझता है, यही पूजा तथा मांय सम्पूर्ण परिवार को एक सूत्र में बांधे रखता है। कुल देवता की ज्योति, दोनों घरों में वर बधू के वापस आने तक प्रज्वलित रहती है तथा मैहर अथवा परिवार का अन्य सदस्य जो मांय प्राप्त करने का पात्र हो को उस स्थान पर उपिस्थत रहना अनिवार्य है, जब तक वर को कन्या पक्ष द्वारा मांय न प्रदान कर दी जाय। यह कार्य वर वधू एवं परिवार को सुख तथा समृध्दि प्रदान करने वाला हैं।

10. लगुन-ओली अथवा फलदान :-

बारात से एक दिन पूर्व वर पक्ष के यहां लग्न पत्रिका खोलने (पढ़ने) का आयोजन किया जाता है। इस आयोजन मे अपनी क्षमता अनुसार अतिथियों को आमंत्रण कर बुलाया जाता है तथा कन्या पक्ष से कन्या के भाई-बहनें, भाभी आदि आयोजन में सम्मिलित होकर कार्यक्रम को सम्पन्न कराते है। आयोजन सांय लगभग 7 बजे आरम्भ होता है, इसमें लगने वाली सामान की सूची निम्न अनुसार है। वर पक्ष हेतु पुजन सामग्री :- रोरी, हल्दी, चावल, चन्दन, सुपाड़ी, हल्दी की गाठें, फूल-माला, दो बड़े माला, बताशा 50 ग्राम, मिष्ठान्न 250 ग्राम, कच्चा सूत रंगीन, खुले पान, 2 लगे वक्र वाले आदि।
ओली आयोजन में कन्या पक्ष को निम्न सामान लगता है- 1 नारियल, सवा किला बताशा तथा 51/- रू. पंडि़त की दक्षिणा, 10/- रू. निछावर, 101/- रू. नगद अथवा स्वर्ण मुद्रिका, चैन आदि। यदि साथ में फलदान का कार्यक्रम है, तब कन्या पक्ष को कम से कम पांच किस्म का मीठा, पांच किस्म के फल, पांच किस्म का सूखा मेवा, (मात्रा यथाशक्ति) एवं वर तथा उनके परिवार : माता-पिता,भाई-भाभी, बहनें एवं परिवार के सभी बच्चों आदि के लिये वस्त्र आभूषण आदि यथा शक्ति अथवा आपसी समझ अनुसार रखना चाहिये तथा स्थानीय पंचों को कन्या पक्ष भी आंमत्रित करें एवं उनके समक्ष कार्यक्रम सम्पन्न हों। आचार्य पंडित जी द्वारा वर एवं कन्या के भाई को भगवान के समक्ष आसन में बिठाकर दोनो से श्री गणेश जी का पूजन करवाते है, पश्चात कन्या का भाई वर की ओली भरता है। प्रथम. एक अंजुली बताशा भरकर वर की ओली में डालें तथा पांचवी अंजुली में बताशा के साथ 1 नारियल, 101/- एवं अंगूठी अथवा चैन आदि जो डालना चाहते हों, रखकर डालें। 10/- वर की निछावर कर नाई को दें तथा एक अंजुली बताशा भी नाई को दें। इस अवसर पर वर पक्ष द्वारा भी कन्या के भाई की निछावर करनी चाहिये, पश्चात वर ओली का सामान अपने पूजा स्थल में माँ की ओली में देकर पुन: पूजा में बैठे। पश्चात वर एवं कन्या का भाई परस्पर माल्यार्पण कर परस्पर मुख मीठा करा, परस्पर पान खिलायें एवं गले मिलकर परस्पर स्नेह तथा सम्बन्धों को इजहार करें। पुन: आचमन कर भगवान का पूजन करें, इसके बाद कन्या का भाई वर को लग्न पत्रिका सौंप दें तथा वरकी निछावर कर नाई को दें। वर पक्ष भाई की निछावर करें, पश्चात वर तथा कन्या पक्ष दोनों के द्वारा 51/- आचार्य की दक्षिणा अपने-अपने हाथ में रखकर संकल्प करें, पश्चात सॉगिता (मूसि्) संकल्प आवश्य करें। 10/- नाई को दूर्वा का देवें। पश्चात भोजन जलपान आदि जो भी हो, सभी अतिथियों को व पुरोहित जी को भी करायें। उक्त अवसर पर कन्या पक्ष द्वारा वर पक्ष की पैर पड़ाई का कार्य होता है, जिसे पूर्व निर्धारित आपसी समझा अनुसार अलग कमरे में जाकर सम्पन्न करें। वर पक्ष का यह दायित्व होता है कि वह अपने जिन सम्मानीय सदस्य जनों का टीका करवाते हैं, उनका कन्या पक्ष से पूर्ण परिचय पश्चात कराते जायें, ताकि सम्बधों मे निर्वहन में और निखार आये अनभिज्ञता न हो। कन्या पक्ष से आये अतिथियों को उचित भोजन सत्कार कराकर सभी सदस्यों को यथाशक्ति नगद राशी अथवा वस्त्र आभूषण आदि के साथ श्रीफल देकर तिलक लगाकर ससम्मान बिदा करें ।

11 चीकट, (भात):-

यह कार्यक्रम वर कन्या दोनों पक्षों में समान रूप से सम्पन्न किया जाता है। चीकट मामा पक्ष अपने सम्बन्धी के साथ गाजे-बाजे सहित अपनी बहन के द्वार पर आते हैं तथा चीकट का मुख्य सामान मामा-मामी अपने सिर पर रखकर खड़े होते है। बहनें अपने भाई-भाभी की चौक पूर कर आगवानी करती है तथा अन्दर ले जाकर शर्बत मिष्ठान्न आदि से सभी का स्वागत करती है तथा भाई-भाभी के गले मिलकर सुख का इजहार करतीं है तथा चीकट का लाया हुआ सामान सभी दिखाने के लिये सजाकर रखती है। अपने मातृ पक्ष से प्राप्त सहयोग से बहिन प्रसन्न होती है। भात:- यह कार्य कन्या पक्ष के यहां मडवा के पास बैठकर सम्पन्न होता है, इसमें कन्या, माता-पिता (बहन-बहनोई) को पटा में बिठाकर रोरी तिलक लगा माला पहनाकर मामी (सभी) उनकी आरती उतारकर बलायें लेती है तथा वहीं पर मधुर जल से बहन की लट धोकर सभी मामा-मामी उसका पान करते है एवं बहन के प्रति अपने दायित्व निर्वहन की रस्म पूर्ण होती है।
नोट :- वर पक्ष में मामा बारात में कन्हर स्नान करते थे, यह प्रथा आजकल बन्द हो गई है।

12. बारात निकासी :-

यह कार्य वर के यहां बारात प्रस्थान के समय होता है। वर को सजा सवाँर कर महिलायें द्वार पर खड़ी करती है, वर को धूप-छांव प्राकृतिक आपदा से बचाने, वर के ऊपर वर के मानदान बहनोई आदि चार लोग चादर तानकर खड़े होते हैं, गाजे-बाजे के साथ मां, बहिनें, चाची, मामी, फूआ आदि बुर्जुग महिलायें सूपा, पूड़ी, मूसल आदि से वर की बलायें लेती है, डिठौना के चिन्ह के रूप में काजल लगाती है, रोरी तिलक लगाकर आटा-राई से नजर उतारती है, मां के लिये पुत्र कितना भी बड़ा हो सदैव कोमल सुकुमार ही नजर आता है, उसको क्षुधा का आभास न हो, अपने वक्ष से लगाती है, जैसे बचपन में दुग्धपान कराती थी, यह उसी की याद है। बहनें आदि सभी तिलक लगाकर कुछ मुद्रिकायें मार्ग व्यय हेतु भाई (वर) को देती है। पश्चात पूजा की थाल लेकर देवी मां के मन्दिर अर्थात जन्मदायनी मां से अनुमति प्राप्त कर जीवन पथ पर प्रवेश करने हेतु जगत मां से आज्ञा लेने पैदल ही जाते हैं। मन्दिर में मां का पूजन अर्चन कर नारियल भेंट दें, आशीर्वाद ग्रहण कर वहीं से गन्तव्य स्थल के लिये उपयुक्त वाहन, घोड़ा, कार, बस आदि द्वारा चल पड़ते हैं। सुखी दाम्पत्य जीवन की कामना हेतु रास्ते में भी वर श्री गौरी एवं गणेश जी को अपने साथ ही लेकर चलता है।

13. द्वार-चार :-

यह आयोजन कन्या पक्ष के द्वारा द्वार पर बारात पहुंचने पर सम्पन्न होता है। इसमें कन्या पक्ष अपने द्वार पर बारात आगमन में तोरण द्वार सजाकर, चौक आदि पूर कर मंगल कलश धारण कर बारात आने पर उसकी अगवानी करती है। द्वाराचार्य से पहले बरात आने पर नाई द्वारा पांवड़े का वस्त्र बिछाया जाता है, जिसमें खड़े होकर पहले मामा से मामा की भेट कराई जाती है तथा बाद में दोनो घर धनी की भेंट कराई जाती है, भेंट के समय दोनों पक्ष आपस में गले मिलें पश्चात कन्या पक्ष 51/- या 101/- यथाशक्ति सम्मान देकर कन्या पक्ष के धनी, वर के धनी को तथा कन्या पक्ष के मामा वर पक्ष के मामा को देकर चरण स्पर्ण करें तथा परस्पर एक-दूसरे की निछावर करके 10-10/- नाई को दें। पांवड़े का कपड़ा भी नाई लेता है। कलश कन्या की बुआ अथवा बड़ी बहनें लेकर खड़ी होती है।प्रथम द्वार पर वर का पूजन घोड़े पर ही किया जाता है। सर्वप्रथम वर पक्ष के मुखिया (पगरैत) द्वारा कलश के सम्मान में एक हो या दो सभी में कुछ नगद राशि (101/-) या उचित मात्रा में उन पर रख कर कलश को नमन करते हैं। (पुनश्च) अन्दर से कन्या आकर वर को देखकर उस पर पीले चावल फेंक कर अपनी वैवाहिक बन्धन में बंधने की स्वीकृति प्रदान करती है। पुरोहित द्वारा (कन्या एवं वर पक्ष) दोनों के स्थानीय पंचों तथा बुजुर्ग सम्मानीय जनों की उपिस्थति में द्वारचार की क्रिया प्रारम्भ करते है। सर्वप्रथम घोड़े की पूजा की जाती है। पश्चात वर के साथ चल रहे श्री गौरी जी एवं गणेश जी का पूजन किया जाता है। ततपश्चात कन्या के पिता, पालक अथवा कन्यादान ग्रहण करने वाले व्यक्ति के द्वारा वर का पूजन कर 101/- रू. या चाँदी के एक कलदार सिक्के या स्वर्ण चैन आदि पहनाकर तिलक किया जाता है। उपिस्थत पुरोहितों को दक्षिणा दोनो पक्षों द्वारा कम से कम 51/-, 51/- रू. देकर आचार्य से आशीर्वाद ग्रहण करें दोनों पक्षों द्वारा 10/- 10/- रू. वर की निछावर कर नाइयों को देवें तथा घोड़े की भी दोनों पक्षों द्वारा 10/- रू. से निछावर कार घोड़ा चालक (सईस) को देवें। पश्चात वर का बहनोई वर को घोड़े से उतारकर वरमाला स्थल में विराजमान करायें, साथ-साथ रहकर गणेश जी आदि संभालने में वर की मदद करें। इसके पूर्व घोड़े से उतारते समय, घोड़ा चालक को नेग के 21/- रू. आवश्य देवें।

14. वरमाला कार्यक्रम :-

मंच के समक्ष उपिस्थत जन समुदाय एवं मंच पर उपिस्थत पुरोहितों तथा गण मान्य पंच जन के समक्ष, दोनों आचार्य पुरोहितों द्वारा प्रथम स्विस्त वाचन हो, पश्चात मंत्रों के ध्वनि के साथ ही वरमाला के द्वारा वर-कन्या एक-दूसरे को वरण करें, उपिस्थत समाज करतल ध्वनि से स्वागत करें।
नोट :- वर्तमान में यह मंच पर ही सम्पन्न होता है, स्थानीय पंचायत के पंचों द्वारा वर-वधू को वैवाहिक शुभकामना पत्र एवं गिफ्ट भी दिये जाने लगे है

सम्मान एवं महूर्त का रखें ध्यान :-
वर्तमान में यह देखा जा रहा है कि प्राय: भोजनादि की व्यवस्था वर पक्ष द्वारा की जाती है, कन्या पक्ष खर्च (नगद राशि) देकर, मुक्त रहते हैं, बाहर से आने या अन्य विसंगतियों के चलते यहां तक तो ठीक है परन्तु हम अपनी सभ्यता भूल जायें यह सही नहीं है।यह देखा जा रहा है कि दोनों पक्ष अपने सम्मानीय जनों का आदर सत्कार देना भी भूलते जा रहे है। यहां तक कि आधुनिकता के चलते अपने निकटतम सम्मानीय/बुजुर्ग जनों से भोजन करने का आग्रह तक नहीं करते। कन्या पक्ष के प्रमुख वर पक्ष के प्रमुखों (समाधियों) से विवाह के अन्त तक भी भोजनादि की नहीं पूछते। यह बातें हमारी संस्कृति के विरुद्ध है। .पया परस्पर मान-सम्मान आवश्य दें तथा वैवाहिक मुहूर्त का भी ध्यान रखें। फोटोग्राफी, ठीक है, परन्तु उनके पीछे वैवाहिकमुहूर्तो जिनकी प्रक्रिया आपने महीनों पंडित के चक्कर लगाकर पूर्ण की है, निकल न जाय इसका ध्यान रखें। शुभ मुहूर्त में सम्पन्न किये गये कार्य जीवन के लिये सुखद होते है।

15. मंडप में वैवाहिक कार्यक्रम :-

वैवाहिक कार्यक्रम जिसके लिये आप भव्य आयोजन रूपी समुद्र तैरकर आये हैं, वह प्राय: अर्धरात्रि के बाद आरम्भ होते हैं। तब तक सम्पूर्ण बाजार बन्द हो जाते हैं। वैसे प्राय: वर पक्ष बारात के एक दिन पूर्व ही लगने वाली सामग्री की पेटी लगा लेते हैं, जिसमें निम्न लिखित सामान की आवश्यकता होती है - लाल रंग की एक थैली (खड़ी गांठ हल्दी, सुपाड़ी, चिल्लर, खुले नोट एवं अन्य आवश्यक सामग्री रखने हेतु), श्री गणेश जी की फरियॉ 2 नग, रोरी,मेंहदी, ईगुर, आलता (महावर), ककई, ककवा, कांच के बूंदा, बिन्दी, राल, लाखें, चूड़ी-1 जोड़ी, गुलाल, हल्दी पिसी, सिंदोरी, सिंदौरा, खड़े धना दन्दौर, ऐपन की थपियां, धान 200 ग्राम, गुड़ 250 ग्राम, चना की भाजी पिसी 50 ग्राम, सुपाड़ी खड़ी 100 ग्राम, 21 नग हल्दी खड़ी, खजूर की मौर 2 नग, रंगीन सूत 1 गिट्टी। रंगीन कागज- 6 ताव, एक कोरी कापी, दोना प्लास्टिक के 10 नग, चांदी का सिक्का 1 नग, मंडप का लाल तूल 2 मीटर पांवड़े का कपड़ा 1 मीटर, गंठजोड़ा का पीला मलमल 3-3 मीटर के 2 नग, वरन के वस्त्र(टावल-गमछा) 7 नग। नारियल 40 नग, बताशा 5 किलो, खुले पान डठंल वाले 25 नग, धान बुवाई की अंगूठी, वस्त्र आदि, बिछिया गंसाई की साड़ी आदि, चढ़ाव की साड़ी ब्लाउज, पेटीकोट नाड़ा सहित, जेवर 5 नग वीजासेन की पुतरिया (3 सोने 2 चांदी के (कालीपोत वर्जित है), मीठा अच्छा 2 किलो, 5 नग अच्छे किस्म के रूमाल (तथा छोटे बहन-भाइयों के लिये कपड़े) पठौना में रखे जाते हैं। वर्तमान में नगद राशि रख दी जाती है। नाइन एवं बरौनी की साड़ी। कम से कम 1 नग बांस का छींटा या चकोटी अवश्य लायें।

16. विवाह की रस्में :-

सर्वप्रथम वर पक्ष द्वारा स्थानीय पंचों को हल्दी की गांठ देकर चढ़ावा सहित सभी वैवाहिक कार्यक्रम संपन्न कराने के लिये आमंत्रित करना चाहिये तथा पंचों एवं दोनों पक्षों के सम्मानीय, जनों के समक्ष चढ़ावें का कार्य आरम्भ करें, सर्वप्रथम मंडप के लिये लाये लाल तूल में 5/-, एक सुपाड़ी, 1 हल्दी की गांठ बांधकर नाई को दें तथा उसे मंडवा मे ऊपर रखवा दें, यदि बन सके तो मंडप के ऊपर बंधवा दें। बाद में पुरोहित जी को चौक पूरने हेतु आटा, गुलाल, हल्दी एवं चने की भाजी दें, पश्चात 1 दोने में आवश्यकतानुसार सुपाड़ी एवं हल्दी की गांठे आचार्य को दें। फिर 1 कोपर, 3 थाली, 5 बर्तनो में लाये गये चढ़ाव के सामान को सजा दें। चढ़ाव के समय 11 नारियल रखे जाते हैं। वह कन्या पक्ष के हो जाते हैं। वर पक्ष पांव पखारने वालों को अलग से नारियल देवें। लड़की के पिता, मामा, फूफा, चाचा आदि को छोड़कर शेष सभी पांव पखारने वालों को वर पक्ष द्वारा नारियल या अन्य उपहार जो लाया गया हो, दिया जावें।

प्रथम बार मंडप में कन्या के आने पर पहली ओली फूफा/बहनोई (मानदान) से ही भरवायें। नियम पूर्व में बताया जा चुका है।

दूसरी ओली चढ़ावा का जेवर, साड़ी पहनकर आने पर डाली जावेगी।

तीसरी ओली बेला सोपते समय सभा की होती है।

चौथी ओली विवाहोपरान्त बिदा की डाली जाती है।

माता-पिता द्वारा किये जाने वाले कन्यादान के समय कन्या के भाई द्वारा गंगा प्रवाहित की जाती है (जिसे गडआ ढरकाई कहते है) इस कार्य में भी वर पक्ष द्वारा भाई को गंगा प्रवाहित करने के पश्चात नेंग में वस्त्र आभूषण अथवा नगद राशि नारियल के लिये 21/-, 21/- रूपये दे दें, ताकि वह जहां भी आवश्यकता समझें, उन्ही पैसों से पूजा कर लें।

सम्पूर्ण विवाह सम्पन्न किये जाने हेतु पुरोहित के लिये कम से कम दोनों आचार्यो को अलग वर पक्ष द्वारा 351+351 रूपये एवं कन्या पक्ष द्वारा 201+201 रूपये दिये जाने चाहिये। उपरोक्त राशि विवाह पूर्ण होने पर दोनों पक्ष वर तथा कन्या के हाथ रखकर संकल्प करा आशीर्वाद अवश्य दिला दें।

कन्यादान उपरान्त किये जाने गौदानों की राशि 101/- से कम न हो, कन्यादान के उपरान्त वरपक्ष ‘वर’ को दान ग्रहण करने के अपराध से दोष मुक्त होने हेतु ग्यारह आचार्यो को कम से कम रू, 11-11 रूपये प्रत्येक को प्रायश्चित संकल्प अवश्य करायें। संकल्प करने के बाद एक एक संकल्प दोनों पुराहितों को भी दे दें तथा शेष 9 संकल्प में से 5 कन्या पक्ष तथा 4 वर पक्ष अलग से रख लें तथा यह राशि उपयुक्त पात्र गरीब ब्राम्हण अथवा मंदिरों में या गुरू आदि को देवें। धान बुवाई से पूर्व जो अग्नि प्रज्वलित की जाती है, उसमें सप्तवर्ण (अर्थात) दोनों पक्षों के दो आचार्य, 2 पुरोहित, 2 गुरू तथा एक ब्रम्हाजी का होता है। अत: इन के लिये लाये गये वरण के प्रत्येक वस्त्रों में 11/-, 11/- रू. हल्दी गांठ, सुपाड़ी बांधकर आचार्य जी को देवें, वह वरण का दान सम्पन्न करा देगें। पश्चात एक-एक वस्त्र दोनों पुरोहितों को दे एवं 3 वर पक्ष 2 कन्या पक्ष रखें जो अपने-अपने गुरू एवं आचार्य को देवें तथा इसी में से 1 वस्त्र ब्रम्हा जी का किसी मन्दिर में जाकर भगवान को समर्पित करें। धान बोवाई का नेग पूर्ण होने के उपरान्त दूल्हे द्वारा कन्या के भाई को साथ में लाई गई स्वर्ण मुद्रिका पहनायें अथवा वस्त्र आदि जो लाये हों देवें। कन्यादान के बाद वर एवं कन्या के पॉव पखारने से जो धन आये उसे अलग रखें बाद में आभूषण आदि वर पक्ष को दे देवें नगद राशि जो आई हो, उसमें से 40 प्रतिशत दान के लिये (दोनों पक्ष 20-20 प्रतिशत दान हेतु लेकर यथाशक्ति पास से और मिलाकर दान देवें शेष 60 प्रतिशत वर पक्ष को दे दें। मांग भरने के लिये पेटी में लाये गये चांदी के सिक्के से वर द्वारा मांग भरी जाय, चांदी शुद्ध धातु मानी गई है तथा प्रदूशणहीन है। मांग भरने के उपरान्त बुआ मांग सँवारती है, उसे नेग दिया जाता है। साड़ी अथवा उसके समकक्ष नगद राशि वर पक्ष द्वारा दी जानी चाहिये। पश्चात बिछिया गंसाई (पहनाने) का नेग कन्या की भाभी (भावज) का होता है, बिछिया पहनाने के बाद वर के हाथ से कम से कम 501/- रूपये अथवा साड़ी ब्लाउज पेटीकोट के साथ कुछ नगद राशी भेंट कर दी जावें। कन्यादान के समय दोनों आचार्य (पुरोहित) अपने-अपने यजमान के निर्मल यशस्वी वंशावली का वर्णन करते हैं, जिसे वंशोच्चार कहा जाता है, इसकी दक्षिणा वर तथा कन्या पक्ष द्वारा अपने-अपने पुरोहित को कम से कम 51/- रू. अलग से देना चाहिये। खड़ग का नेग- कुषा की खड़ग बनाकर खड़ग का नेग करवाता है, तब नाई को वर पक्ष की तरफ से 11/- रू. अलग देने चाहिये। ध्रुव दर्शन का नेंग- वर कन्या के 5-7 बचनों को स्वीकार करने उपरान्त ध्रुवतारा जो नभ मण्डल में वर्श के 365 दिन रात एवं दिन में उदय रहता है, इनका साक्षी बनाये जाने हेतु ध्रुव दर्शन करता है। उसका नेंग कम से कम 11/- रू. अलग से देना चाहिये। भॉवर के पूर्व गॉठ बांधने का कार्य वर की बहन का होता है। वर पक्ष द्वारा उन्हें भी यथोचित भेंट देना चाहिये। विवाह की सभी रस्में पूर्ण होने उपरान्त कन्या के भाई द्वारा दहेज का बेला (कांसे का कटोरा पीले चावल से भरकर उसमें 1 साड़ी बौडार की रखते हैं) 101/- नगद रखकर वर को सौंप देना चाहिये। आचार्य की दक्षिणा जो पूर्व निर्धारित है, देकर उनका आशीर्वाद लेना चाहिये। विवाह उपरान्त वर कन्या पक्ष के मेंहर में जाता है, जहां पर उन्हें कन्या परिवार के पूज्य सदस्य के रूप में सम्मिलत किया जाता है एवं मांय दी जाती है तथा वर कुल देवता को बन्दन कर आशीर्वाद प्राप्त करता है। वहीं पर दूधभात अथवा पेड़ा आदि खिलाकर कुंवर कलेवा नेग की रस्म की जाती है। अन्य नेंग जैसे दीपक ज्योति मिलाना, थाली में रगींन पानी में अंगूठी ढूढ़ना, गिलास में चावल भरकर लुढ़काना है। वहां से वापस आकर वर मंडप के बन्धन खोलकर विवाह मंडप को अन्य पूजा के लिये मुक्त करता है। बिदा के समय वर पक्ष के अलग-अलग गोत्र के 5-7 लोग मंडप की परिक्रमा कर नारियल फोड़कर वहीं छोड़कर प्रणामकर वापस आते हैं। पूर्व में फाग के कार्यक्रम समधी-समधिन के साथ होते थें, जो अब बन्द कर दिये गये हैं।

17. विदाई -

बहिन को बिदा करते समय भाई डोली/कार रोककर अपने भाई बहिन के प्यार को प्रगट करता है। वर पक्ष द्वारा भाई को कुछ धन कम से कम 501/- रू. अथवा यथाशक्ति नेग दिया जाता है।

18. सजन भेट:-

बिदाई के समय कुछ दूर चलकर कन्या के पिता एवं वर के पिता (दोनों समधी) परस्पर पान बदलकर गले मिलते हैं तथा कन्या के पिता 51/- या 101/- रू. देकर समधी के पैर पड़ते हैं तथा कन्या के पिता द्वारा बारात तथा उनके सत्कार में भूल से भी रह गई सामान्य त्रुटियों की भी क्षमा मांगते है, वर के पिता उन्हें गले लगाकर सस्नेह ‘उनकी पुत्री उनके यहां सुखी रहेगी’ आश्वस्त करते हैं।

रामायण में भी जनक जी द्वारा कहा गया है रूख राशि बिदा करिबो कठिनाई

विषेश:- बिदाई के बाद यदि बारात नगर के बाहर किसी नदी को पार करती है तो उसके पहले किसी भी देवस्थल पर एक नारियल फोडे एवं नदी में सिंदोरी, सिंदारा एवं दन्दौर को प्रवाहित करें।

19. लक्ष्मी स्वरूप नववधू का ससुराल आगमन :-

कन्या जब वधू बनकर रीति अनुसार पूजन, मुंहजौनी व अन्य प्रचलित रस्मों के साथ धूमधाम पूर्वक ससुराल आती है तो उसे आपके परिवार की रहन-सहन, पारिवारिक स्थितियों तथा सदस्यों के स्वभाव का कोई ज्ञान नही होता तथा उसके समक्ष मायके में बिताया उछल- कूद करता, चंचल स्वभाव बाल्यहठ, माता-पिता द्वारा प्राप्त वात्सल्य युक्त प्रेम होता है, जबकि ससुराल में मान-सम्मान का ध्यान रखते हुये, गम्भीरता, धीरज, धैर्य धारण करते हुये, प्रेम, ममता, आदर्श स्थापित करना एक चुनौती होती है। अत: नववधू से बड़े बुजुर्ग पुत्रीवत आचरण कर, अपने घर के चलन व्यवहार को स्नेहपूर्वक समझायें। रामायण में महाराज दशरथ जी ने अपनी चारों बइुओं को बहुत संभालकर रखने के लिये महारानिया से कहा था।

वधू लरकिनी, पर घर आयी ।।

राखिय नैन पलक की नाई ।।

संकलन कर्ता-रमेश बाबू गंधी, ग्वालियर (म.प्र.)