आरती क्या है और कैसे करना चाहिये
आरती को 'आरात्रिका' अथवा 'आरार्तिक' और 'नीराजन' भी कहते है। पूजा के अंत में आरती की जाती है। पूजन में जो त्रुटि रह जाती है, आरती से उसकी पूर्ति होती है। स्कन्द पुराण में कहा गया है :-
सर्व सम्पूर्णतामेत कृते नीराजने शिवे।।
पूजन मन्त्रहीन और क्रियाहीन होने पर भी नीराजन (आरती) कर लेने से उसमें सारी पूर्णता आ जाती है। आरती में पहले मूलमंत्र (भगवान या जिस देवता का जिस मन्त्र से पूजन किया गया हो, उस मन्त्र) के द्वारा तीन बार पुष्पांजलि देनी चाहिये और ढोल, नगारे, शंख, घड़ियाल आदि महवाधों की ध्वनि तथा जय -जयकार के शब्द के साथ शुद्ध पात्र में घृत से या कपूर से विषम संख्या की अनेक बत्तियां जलाकर आरती करनी चाहिए।
महानीराजनं कुर्यान्महावाद्धजयस्वनैः ।।
प्रज्वलयेत् तदर्थ च कर्पूरेण घृतेन वा ।
आरात्रिकं शुभे पात्रं विशमानेकवत्रिकम ।।
साधारणतः पाँच बत्तियों से आरती की जाती है, इसे 'पंचप्रदीप' भी कहते हैं। एक, सात या उससे भी अधिक बत्तियों से आरती की जाती है। कुंकुम, अगर, कपूर, चन्दन, रुई और घी, धूप की एक, पाँच, या सात बत्तियाँ बनाकर शंख, घण्टा आदि बाजे बजाते हुए आरती करनी चाहिये।
आरती के पाँच अंग हिते हैं। प्रथम दीपमाला के द्वारा, दूसरे जलयुक्त शंख से, तीसरे धुले हुए वस्त्र से, चौथे आम और पीपल आदि के पत्तों से और पाँचवें साष्टांग दण्डवत् से आरती करें। आरती उतारते समय सर्व प्रथम भगवान की प्रतिमा के चरणों में चार बार घुमायें, दो बार नाभिदेश में, एक बार मुख मण्डल पर और सात बार समस्त अंगो पर घुमायें।
यथार्थ में आरती पूजन के अंत में इष्टदेव की प्रसन्नता के हेतु की जाती है। इसमें इष्टदेव को दीपक दिखने के साथ ही उनका स्तवन तथा गुणगान किया जाता है।
आर्तिक्यं कल्पित भक्त्त्यां गृहाण परमेश्वरः ||
कृपया प्रत्येक आरती के बाद में इस स्तोत्र का पाठ अवश्य करना चहिये
क्षमापन स्तोत्र
पूंजा चैव न जानामि क्षमस्व परमेश्वरम् ||
मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वर |
यत्पूजितं मया देव परिपूर्ण तदस्तु में ||
जपच्छिद्रं जपश्चिचद्रं यच्छिद्रं शान्तिकर्मणि |
सर्वभवतु मेछिद्रं ब्राह्मणानां प्रसादतः ||
अपराध सहस्त्राणि क्रियंतेंहर्निशं मया |
दासोयमीति मां मत्वा क्षमस्व परमेश्वर ||
ज्ञानतअज्ञानतो वापि यन्न्युनमधिकं कृतम् |
तत्सर्व क्षम्यतां देव प्रसीद परमेश्वर ||
कर्मणा मनसा वाचा तव पूंजा मया कृता|
तेन तुष्टिं समासाद्ध प्रसीद परमेश्वर ||
प्रत्येक आरती के बाद इस स्त्रोत का पाठ करें। देवियों की आरती के बाद इस स्त्रोत का पाठ करते समय परमेश्वर शब्द के स्थान पर 'परमेश्वरी' शब्द का उच्चारण करें।