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कहानी जुगल विला

कहानी

जुगल विला

डॉक्टर जुगल और उनकी पत्नी सुप्रिया तथा उनका एक प्यारा सा बेटा राज एवं बूढे पिता विष्णु दत्त माता गिरजा अपने छोटे से परिवार के साथ ख़ुशी -ख़ुशी जीवन व्यतीत कर रहे थे। एक दिन उनकी मॉ गिरजा बोली बहू 'राज' बेटा अब बड़ा हो गया है, राज का एक और भाई होना चाहिये सुप्रिया उनकी बात को हँसकर टाल देती कहती मॉ एक ही बेटा काफी है।

हँसी -खुसी के इन पलों के बीच एक दिन सुप्रिया बोली जुगल हमारे परिवार में एक ख़ुशी फिर आने वाली है और तुम फिर से पिता बनने वाले हो। यह सुनकर जुगल का मन ख़ुशी से लहलहा उठा और वह मॉ के पास जाकर बोला मॉ -बाबूजी आपको बधाई हो हमारे परिवार में शीघ्र ही आपका एक और पोता आने वाला है। सुप्रिया ने भी झुककर मॉ -बाबूजी के पैर छुए तो मॉ -बाबूजी दोनों ने आशीर्वाद दिया -"दूधो नहाओ पूतो फलो" और एक सुन्दर से बेटे को जन्म दो। यह सब सुनकर सुप्रिया को अजीब सा लगा कि इतने पढ़े -लिखे परिवार में भी बेटे की चाह लेकिन वह बोली कुछ नहीं। वह तो मन ही मन बेटी की चाह रखती थी क्यों कि वह सोचती थी कि एक बेटा और एक बेटी से परिवार पूरा हो जावेगा। डॉक्टर ने डिलीवरी का टाइम अक्टूबर माह का दिया था। धीरे -धीरे समय कटता गया और अक्टूबर का महीना भी आ गया हम सभी लोग दीपावली की तैयारियों में व्यस्त थे क्यों कि दीपावली अब केवल पांच दिन दूर थी। घर में सभी के लिये नये कपड़े और पटाखे लाये गये थे। मैंने भी आने वाले बेबी के लिये स्वेटर और अन्य चीजें तैयार कर लीं थी।

आज सुबह से ही राज बहुत खुश था कि शाम को दीपावली है मैं बहुत सारे पटाखे चलाऊंगा और जी भर के मिठाई खाऊंगा। दोपहर होते -होते मेरी प्रसव पीड़ा बढ़ती गई मैंने जुगल से कहा तो वे मुक्षे लेकर तुरन्त हॉस्पीटल चल दिये। डॉक्टर मुक्षे लेवररूम में ले गये।

डॉक्टर, जुगल आपको बधाई हो आपके घर दीवाली के दिन लक्ष्मी आई है। मिठाई खिलाइये नर्स ने कहा तो जुगल के चेहरे पर कोई भाव नहीं आये और अपनी जगह पर शून्य होकर बैठ गये मॉ -बाबूजी को भी यह खबर लगी तो उनके चेहरे पर भी ख़ुशी जैसी कोई प्रतिक्रिया नजर नहीं आई। उस दिन हमारे घर में दीवाली उतने उत्साह से नहीं मनाई गई जितनी कि हर साल मनाई जाती थी। तीन दिन बाद अस्पताल से छुट्टी होकर मैं घर आई। मैंने मन ही मन अपनी बेटी का नाम 'लक्ष्मी' रख दिया था। लक्ष्मी को अब घर में सभी धीरे -धीरे स्वीकार करने लगे लेकिन जितना प्रेम और चीजें राज के लिये आती थीं उतनी लक्ष्मी के लिये कभी नहीं आई। लक्ष्मी अब तीन साल की हो गई थी तो जुगल से कहा कि लक्ष्मी को राज के स्कूल में दाखिला दिला देते हैं तो जुगल बोले कि उसे कोएड में नहीं पढायेगे पास के ही लड़कियों के स्कूल में दाखिला दिला दो। समय पंख लगाकर कब उड़ गया पता ही नहीं चला। लक्ष्मी के दादा -दादी का भी स्वर्गवास हो चुका था। राज आई.आई.टी.कानपुर से बी.ई.फायनल ईयर कर रहा था इधर लक्ष्मी ने भी बारहवीं के एक्जाम दिए थे। लक्ष्मी पढ़ाई के साथ -साथ मानवीय भावनाओं में भी अब्बल थी उसे दूसरों की परवाह करना अच्छी तरह आता था। वह हमेशा अपने पिताजी का ख्याल रखती थी हालांकि जुगल उसे इतना पसंद नहीं करते थे जितना कि राज को करते थे। जब बारहवीं बोर्ड का रिजल्ट आया तो लक्ष्मी ने पुरे ऑल इण्डिया में प्रथम स्थान पाया था। सुबह से ही घर मे बधाई देने वालों का तांता सा लगा हुआ था लेकिन जुगन ने अपनी बेटी को ना तो शाबाशी दी और ना ही प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरा।

राज पढ़कर एक प्रसिद्ध कम्पनी में इंजीनियर बन गया था और हम लोंगो ने उसकी शादी कर दी थी। वह भी अपनी गृहस्थी में रम गया था। इधर लक्ष्मी भी पढ़ लिखकर नामी डॉक्टर बन गई थी हम दौनो की अवस्था भी अब 60 साल के आसपास हो गई थी। हालांकि घर में सम्पन्नता थी फिर भी राज की बहू रुम्पा को हम दोनों बूढ़े -बुढ़ियाँ फूटी आँख नहीं सुहाते थे।

मॉ एक खुशखबरी है घर में घुसते ही लक्ष्मी ने आवाज लगाई मुक्षे एक साल के लिये विदेश जाकर कैंसर पीड़ितों के लिए रिसर्च वर्क करना है। मगर पिताजी तपाक से नाराज होकर बोले कोई कहीं नहीं जावेगा, सुप्रिया इसके लिये लड़का देखकर हाथ पीले कर दो। मगर सुप्रिया इस बात के लिये तैयार न थी और पहली बार जुगल की बात को अनसुना कर लक्ष्मी को विदेश जाने की अनुमति दे दी।

राज की बहू रुम्पा को तो हम बूढ़े -बुढ़िया शुरू से ही फूटी आँख न सुहाते थे अब उसने राज से कानाफूसी भी शुरू कर दी थी। घर का माहोल हम लोंगो के लिये बहुत ख़राब हो गया था। जिंदगी हमें येसे बुरे दिन भी दिखायेगी इसकी हमने कभी कल्पना भी नहीं की थी।

आज दीवाली थी और लक्ष्मी विदेश से लौटकर उमंग से भरी बाहर से राज भईया, रुम्पा भाभी, मॉ -बाबूजी हैप्पी दीवाली कहती हुई घर में घुसी तो रुम्पा ने उसे देखकर बुरा सा मुँह बनाया और राज ने भी उसकी बात को अनसुना कर दिया। वह जीने चढ़कर मॉ -बाबूजी के कमरे में पहुँची तो वहाँ ताला लगा हुआ था वह नीचे आई और भाई से पूछा मॉ -बाबूजी कहाँ है, तो रुम्पा बोली जहाँ होना चाहिये वहीँ है तो लक्ष्मी बोली इसका क्या मतलब ? तो रुम्पा बोली कि मतलब -बतलब कुछ नहीं वो दोनों बूढ़े -बुढ़िया बहुत दखलंदाजी करते थे, हमारा जीना हराम कर दिया था। हमने उन्हें उनकी सही जगह वृद्धाश्रम पहुँचा दिया है। लक्ष्मी ने इसकी वास्तविकता जानने के लिये अपने भाई की तरफ देखा तो वह भी बगलें झांकले लगा। लक्ष्मी समझ चुकी थी कि जो रुम्पा कह रही है वही वास्तविकता थी। लक्ष्मी ने अपना एयरबेग उठाया और बोझिल कदमों से घर के बाहर निकल आई। टैक्सी को हाथ दिया, टैक्सी वाले ने पूछा कहाँ चलोगी तो वह बोली भईया सरजूबाई वृद्धाश्रम चलो, और वह टैक्सी के पीछे वाली सीट पर जाकर बैठ गई उसकी आँखों से झर -झर आँसू बह रहे थे पता ही नहीं चला कि कब वृद्धाश्रम आ गया थके कदमों से आश्रम की सीड़ियाँ चढ़ने लगी।

आँसू भरी आँखों से सामने देखा तो जर्जर अवस्था में एक स्त्री झाड़ू लगा रही थी उसने आँखों से आँसू साफ किये तो मन काँप गया कि मॉ की आज क्या दशा हो गई है। वह मॉ से जाकर लिपट गई दोनों मॉ बेटी एक दूसरे से गले लगकर बहुत देर तक रोती रहीं। लक्ष्मी बोली मॉ, बाबूजी कहाँ है, मॉ उसको लेकर एक कमरे में पहुँची जहाँ एक तख़्त पर दरी विछी हुई थी जिस पर शून्य अवस्था में बाबूजी लेटे हुए थे। सुप्रिया बोली जुगल देखो हमारी लक्ष्मी आई है। जुगल कुछ बोला नहीं मगर अपनी गर्दन घुमाकर लक्ष्मी की और देखा तो लक्ष्मी की रुलाई एक बार फूट पड़ी और तीनों काफी देर तक रोते रहे। लक्ष्मी ने बाबूजी का सामान पैक किया और बोली चलो बाबूजी अपन लोग अपने घर चलते हैं तो बाबूजी बोले अपना घर ? अपना तो अब कोई घर नहीं रहा इस पर लक्ष्मी बोली बाबूजी में जिस हॉस्पीटल के लिये काम करती हूँ वहाँ से मुझे इसी शहर में एक घर भेंट में दिया है जिसका नाम है "जुगल विला" और लक्ष्मी ने उस घर की चाबी अपने बाबूजी के हाथों में थमा दी। तीनों टैक्सी में बैठकर जुगल विला की और चल दिये। जुगल का अन्तर्मन फफक -फफक कर रो रहा था वह सुप्रिया से बोला कि काश ईश्वर ने हमें दो बेटियाँ ही दी होती ...............।

लेखिका - रजनी सोनी, ग्वालियर
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