आरती प्रेतराज सरकार की
आरती संकट हारी की, प्रेत प्रभु जन हितकारी की।
रत्न मय सिंहासन राजै, स्वर्ण मय मुकुट शीश भ्राजे।।
गले मणिमाल दिव्य साजै, तेज लखि सूर्य चन्द्र लाजै।
वस्त्र जगमग तनधारी की, आरती संकट हारी की।।
हाथ में धनु कृपाण शरढाल, संग में सेना बड़ी विशाल।
देखकर भागे भूत कराल, भक्त संकटहर अमित कृपाल।
भूत पति जग अवतारी की, आरती संकट हारी की।।
आन प्रकटे बाबाजी धाम, छा रहा सब भारत में नाम।
किये भक्तों के पूरण काम, जयति जय प्रेतराज बलधाम।।
भक्त उरधाम बिहारी की, आरती संकट हारी की।।
आरती जो करते मन से, क्लेश सब छूटत हैं तन से।
रहे परि पूरण तन जन से, प्रेम हो प्रभु चरणन से।।
सुखद लीला विस्तारी की, आरती संकट हारी की।
प्रेत प्रभु जन हितकारी की।।